1. मनमुख कौन है

1. मनमुख कौन है (खुद गरज इंसान,अपने मन का गुलाम  )

यह लेख भगवान की कृपा, महान गुरु और भगवन जो की अगाध,अदितीय,असीम, असंख्य और धन्य, धन्य है :

चले भगवान और गुरु को हाथ जोड़ कर नमन करें,दंडवत करते हुए उनके कमल चरणों को नमस्कार करें ।असीम शुकराना उनको जिनके ज़रिये एक एक साँस चल रही है । हमारा सर उनके चरणों में युगों युगों तक हमेशा झुका  रहे,हमारा हिर्दय विनम्रता में भीगा रहे ।

हे भगवान ,

        हमें हिर्दय में विनम्रता, पूरण विश्वास, वचनबद्ध,विश्वास, श्रद्धा,सचा प्रेम और सच्ची निष्ठा दें ।

हे भगवान हमें सच्चा और निस्वार्थ  निष्ठा, बिना किसी दुनियादारी की मांगो , अशर्त प्रेम पूरण विस्वास  देना , हमारा सर हमेशा पूरी श्रिस्टी के चरणों में रहे ।

 हे भगवान हम हमेशा भगवान, गुरु, गुरु की  संगत को प्रथम स्थान दें और बाकि चीजें दुसरे स्थान पर रहे ।

भगवान और गुरु हमे समझ दे की हम उनके दिव्य तात्पर्य, की मनमुख कौन है?,  उसको जान पाएं और यह बातें हमेशा याद रखे की :

  • क्या है जो की एक आदमी को मनमुख बनता है ?
  • मनमुख की पहचान
  • हमारे गुण,चरित्र और व्यक्तित्व
  • क्या हम मनमुख हैं ?
  • क्या हम सही दिशा में बढ़ने का प्रयास कर रहे है ?

सही दिशा है :

  • पूरण सच की तलाश  ?
  • हमरे अस्तित्व का पूरण लक्ष्य ?
  • गुरमुख कैसे बने ?
  • मोक्ष कैसे प्राप्त करें ?
  • माया के बन्दनो को कैसे तोडें ?

मूल, एक सार्वभौमिक निर्माता को कैसे पाएं जिसका नाम सच है , जो माया से परे है ।

सबसे पहले हम सब भगवन के आगे प्राथना करें की हमें मनमुख शब्द को समझाने का ज्ञान

 दें ।

यह शब्द दो शब्दों से बना है : मन और मुख ;

मन

मन और कुछ नहीं हमारी चित्त है ।. चित हमारे शरीर का अदृश्य हिस्सा है जो की हमारी अपनी बुद्धि के नियंत्रण में है। स्वनिर्मित बुद्धि ही मनमत है ।यह हमरी सांसारिक विद्या और समाज के बनाये हुए नियमों पर आधारित है ।इसे सांस्कारिक ज्ञान भी कहते है । मनमत और सांसारिक मत दोनों में एक अंश है दुर मत का ।

दुर मत ही वह अनिष्ट बुद्धि है जो हमें प्रेरित करती है :

  • बुरे कर्म
  • पाप काम करने को प्रेरित
  • अपमानवचन,चुगली और पीठ पीछे छुरा भोकना
  • दूसरों को दुःख पहुँचाना
  • दूसरों को धोखा और छलना इत्यादि

मूल रूप से सभी मनमत माया के निरंतर में हैं ।सभी कर्म और क्रिया मनमत के प्रभाव में दो रूप में होती है :

1. रजो

(वासना और  नकारात्मक आलोचना) जिस में उम्मीद,वासना, इच्छाओं,अपमानवचन,चुगली,पीठ पीछे छुरा भोकना

2.. तमो(5 चोर)

जिस में की काम-वासना,गुस्सा,लोभ,स्वार्थी आचार ,अहम,विलास-वस्तुएं में घिरे हुए, जोबन ,धन,सांसारिक वस्तुं,योवन,जुबां का स्वाद,वास एवं स्पर्श।

संक्षेप में चित स्वनिर्मित बुद्धि,सांसारिक और अहित (मनमत, सांसारिक मत और दुर मत )को संचालित करता है।सभी ज्ञान जो की रजो और तमो के अधीन प्राप्त किया है वह माया का हिस्सा है ।

इस लिए अगर हमे भगवन का आशीर्वाद चाहिए तो हम को सच्चाई के रस्ते पर चलना और सच करना होगा ।यह माया के तीसरे भाग सतो के अधीन है ।

3.  सतो

  • दयालुता
  • क्षमा
  • विनम्रता
  • अनुराग
  • धर्म,नित्य सत्य, एक भगवन जो सच है
  • भगवन के चरणों  में ध्यान
  • भगवान के मौलिक शब्दों पर ध्यान
  • सच और सच्चाई का जीवन जीना
  • सच्चे कर्म और क्रिया करें
  • चित और पांच दूतों को नियंत्रण रखें और उनसे बचें
  • अपमानवचन,चुगली और पीठ पीछें बातें करने से बचें
  • किसी को चोट,छल और धोखा ना दें
  • दूसरों की मदद करें
  • अपने समय और धन में से दसवा हिस्सा  दें
  • भगवन और गुरु के चरणों में आत्मसमर्पण करें
  • नि: स्वार्थ सेवा और उदारता करें
  • मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास करें
  • माया के बन्दनों को तोड़ने का प्रयास करें
  • अपने आप को दुबिधा,भ्रम, उद्विग्नता से बचें
  • संतुष्टि
  • इच्छाओं पर नियंत्रण
  • कोई लालच ना रहे
  • धैर्य
  • स्थिरता

यह सभी गुण हमें मनमत से गुरमत तक ले जाते हैं ।गुरमत हमें माया के तीनों अध्याय को हराके माया के चौथे पध जो की सच का मार्ग है – अनादि सच तक पहुंचता है ।येही मार्ग है एक गुरमुख बनने का ।

मुख

दूसरा भाग शब्द मनमुख का है " मुख " . वास्तव में इसका मतलब है " चेहरा",जिस भी दिशा में हमारा चित देख रहा है उसी दिशा में हम भी चल रहे हैं ।हमारे कर्म और क्रिया कैसे होंगें यह जिस दिशा में हमारा मुख है उस पर आधारित हैं ।

मनमुख

मनमुख एक व्यक्ति जो सांसारिक बुद्धि  से  देख रहा है ।ज्योंकि गुरमुख का चेहरा हमेशा भगवान,गुरु, और भगवान के मौलिक शब्दों की तरफ रहता हैं । सरल शब्दों में मनमुख वह हैं जो की सांसारिक बुद्धि के आधारित चलता है। पर उसका ज्ञान कुछ भी नहीं सिवाये जो भी उसने सांसारिक मत(दुनियादारी ) और दुर मत (बुराइ और छल कपट) से सीखा है ।उसकी अपनी शिक्षा, वातावरण से सीखा हुआ ज्ञान और सांसारिक मर्यादा है ।

संक्षेप में मनमुख वह आदमी है जो की रजो और तमो -(माया के दो अंग ) के अधीन काम करता है ।एक और साधारण तरीका इसको समझने का है कुछ संक्षिप्त उधारणों के वर्णन से :

  • जिस को भगवान, गुरु और भगवान के मौलिक शब्दों पर आस्था  ना हो
  • जो की भगवान और गुरु और भगवान के मौलिक शब्दों से प्रतिबद्ध ना हो
  • जिस को भगवान ,गुरु की शिक्षा पर  पर विश्वास ना हो
  • जिस को भगवान ,गुरु और भगवान के मौलिक शब्दों पर निष्ठा ना हो
  • जो की गुरु के बताये गए  ज्ञान पर ना चले
  • जो अपने समय का दसवां हिस्सा (दस्वंड) भगवान और गुरु के चरणों में निस्वार्थ से दें
  • जो अपने धन का दसवां हिस्सा (दस्वंड) भगवान और गुरु के चरणों में ना दें
  • वह व्यक्ति जो पांच दूतों से घिरा हुआ है (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार)
  • वह व्यक्ति जो वासना में डूबा पड़ा है
  • वह व्यक्ति जो अपमानवचन,चुग्गली और पीठ पीछें वार्ता में लगा है
  • वह व्यक्ति जो गुरमत के रूहानी ज्ञान और भगवान के मौलिक शब्दों को अपने जीवन में नहीं उतारता
  • वह व्यक्ति जो भगवान की सारी रचना को प्यार नहीं करता
  • जो नफरत और भेदभाव में विश्वास करता है
  • जो नहीं देख पा रहा की सभी इंसान बराबर है
  • वह जो दूसरों के लिए ना अच्छा सोचता है और न ही अच्छा करता है
  • वह जो मतिभ्रम और भ्रम से भरा है
  • वह जिसके व्यवहार में कोई विनम्रता नहीं
  • वह जो किसी के साथ दयालु नहीं और ना ही कोई दयालुता रखता है
  • वह जो अपने कर्मों में ईमानदार नहीं है

 

अनेक और उधारण है……..

संक्षेप में :

वह व्यक्ति जो गुरमुख नहीं वह मनमुख है

एक व्यक्ति तब तक मनमुख है जब तक की :

  • वह गुरमुख न बन जाये,
  • पूरी तरह से भगवान् को महसूस न करले
  • सभी ईश्वरीय द्वार जिनमे की दसम द्वार और आत्मिक चक्षु जब तक खुलते नहीं
  • जब तक की सातों शक्ति केंद्र जागरूत ना हो जाये
  • जब तक अमृत से धन्य न हो जाये, जो की आत्मा को आनंद और खुशी दे और भगवान् से मिलाये
  • पूरण सच्चाई की नैतिकता – हिरदे में पूरण प्रकाश न हो जाये
  • परमेश्वर के प्रकाश में पूरी तरह समा जाना

सिर्फ पूरण संत ही मनमुख नहीं होता।

सिर्फ भगवन को पूरी तरह समझने वाला ही मनमुख नहीं।

सिर्फ साचा और सच्चाई पर चलने वाला ही मनमुख नहीं।

सिर्फ वह रूहानी आत्मा जो भगवान्  की सभा में रहती है वह ही गुरमुख है। जब तक एक इंसान अन्दर से साफ़ नहीं होता तब तक वह मनमुख रहेगा। जब तक वह पूरण सच्चाई से देख, बोल, सुन नहीं पाता,सच्चाई को बयान नहीं कर पता वह मनमुख रहेगा ।