2 अभी तक की जीवन यात्रा…… (भूमिका)

 

जब कुछ संगत ने उनको (दासन दास जी को) बाबाजी के बारे में बताया तो उनके मन में उनको मिलने की लालसा उठी दासन दास जी को २००० में बाबाजी के दर्शन हुए तभी से दासन दास जी को उनका आशीर्वाद मिला और उन्होंने पूरण विश्वास से बाबाजी से गुरपरसाद प्राप्त कीया

दासन दास बहुत विनम्र और दयालु और मासूम हैं और गुर्प्रसदी नाम के आशीर्वाद से वह बहुत तेजी से आत्मिक प्रगति कर चुके हैं उन्होंने एक एक शब्द गुरु ग्रन्थ साहिब जी का धारण कर लिया है बाबाजी ने उन्हें दूसरों को गुर्प्रसाद से जागरूत करने का कार्य दिया है बाबाजी ने दासन दास जी की इस आत्मिक यात्रा के बारे मैं सभी लोगों को बताने को कहा है

१९४७१९८५ : एक झूठी ज़िन्दगी

धन्य धन्य अगम,अनंत,अपार,बेयंत गुर्प्रसदी गुरकिरपा, पूरण ज्योत पूरण संत पूरण ब्रह्मज्ञानी बाबाजी और धन्य धन्य श्री पार ब्रह्म परमेश्वर , यह गुरु और अकाल पुरख का नौकर संगत में कुछ शब्द कहना चाहता हें

मेरी आपबीतीएक साधारण व्यक्ति जिसने अपने इंसानी ज़िन्दगी के कीमती ५३ वर्ष व्यर्थ ही गवा दिए हो, जिसे यही ही नहीं मालूम की वह क्यों पैदा हुआ है अब जब हम पीछे मुड के देखते है तो लगता है की जैसे वह ५३ वर्ष हमने ४० फीट कूड़ में गुज़ारे हो वह ज़िन्दगी पूरी तरह पांच दूतों, आशा ,तृष्णा, मंशा , अपमानवचन, चुगली और निंदा के घेरें में थी यह वह समय था जो की पूरी तरह से माया की पकड़ में था हमारा सिर्फ एक मकसद थापैसे कमाना और जिंदा रहना हम किसी भी धार्मिक सभा, धरम करम से दूर रहते थे पर जितने भी गलत काम थे उन में शामिल रहते थे ।हम ने सभी कार्य किये हैं माया की पकड़ मेंकाम , क्रोध , लोभ, मोह और अहंकार अब हमें यह सभी दिमागी बीमारियाँ लगती हैं

सभी की तरह हम भी एक सहज और सम्मानजनक जीवन बतीत कर रहे थे

मैं एक स्वच्छ और साफ़सुथरा जीवन जी रहा हूँ ”  ” मैं कभी झूठ नहीं बोलता “, ” मैं कभी किसी को नुक्सान नहीं पहुंचता “, ” मैं सभी से प्यार करने की कोशिश करता हूँ ” ,

मैं किसी से नफरत नहीं करता ” , “मैं अपने परिवार की खुश हालता चाहता हूँऔरमैं अच्छा कमाता हूँ इसी लिए अच्छा रहता हूँ

इस तरह सोचना, यह एक छल के इलावा कुछ भी ना था

मैं हमेशा और अधिक पैसे कमाना चाहता था सभी तरह की सहूलतें , अच्छा रूतबा,अच्छी नौकरी ,अच्छी विद्या अपने को और अपने घर वालों को देना चाहता था सूची बहुत लंम्बी है

गुरु नानकदेव जी ने जो भीअसा दी वारकेधुर की बानी शलोकमें कहा है बस वैसी ही ज़िन्दगी हम बतीत कर रहे थे..अब उनके येही शब्द सत्य हैंपूरण सत्य


शलोक महला

कूड़ राजा कूड़ प्रजा कूड़ सब संसार

कूड़ मंडप कूड़ माड़ी कूड़ भैसंहार

कूड़ सुहिना कूड़ रूपा कूड़ पहनन हार

कूड़ काह्या कूड़ कपड कूड़ रूप अपार

कूड़ मियां कूड़ बीबी खप होए खार

कूड़ कूड़े नेह लगा विसरिया करतार

किस नाल कीचे दोस्ती सब जग चलंहार

कूड़ मीठा कूड़ माखियो कूड़ ढोबे पूर

नानक वाखाने बेनती तुध बाझ कूड़े कूड़


यह शलोक बताता है की सभी चीज़ें कूड़ हैंवह झूठी, छल ,कपट से बनी हैं यह सभी माया का खेल हैंवह सच लगते हैं पर झूठ हैं, बहुत सुन्दर लगती हैं पर वह भी झूठ है यह सभी वस्तु ख़तम हो जाएँगी , यह नाशवान है ,रिश्ते नाते सभी यही रह जायेंगे , तो क्यों हम सब इतने गहरे लगाव में है इस माया की नगरी से

यह शब्द पूर्ण सत्य है इन शब्दों को निरपेक्ष सत्य माने, इनके बारे में कोई संदेह नहीं है और जब तक तुम संदेह में हो और समझ नहीं रहे और इन शब्दों का पालन नहीं करते ,यह भ्रम आपके सत्य के मार्ग के रास्ते में मुख्य अड़चन बनकर खड़ा रहेगा हम भी सभी की तरह कोई अपवाद नहीं थे और पूरी तरह से इन सांसारिक बातों में अवशोषित थे जब तक की हमने आध्यात्मिकता के बारे में सीखना नहीं शुरू किया

सुखमनी से हमारा आध्यात्मिकता का जीवन शुरू हुआ

यह सेवक अब अपने कुछ जाति , आप बीती बतायेगा हमें याद है की हमारे पिताजी सुबह .३० उठ जाते थे वह इशनान करके पूजा पाठ में लग जाते थे वह पांच बानी और सुखमनी साहिब का पाठ ऊचे कंठ से करते थे जब उनकी बानी हमारे कानो में भी पड़ती थी , हमे बहुत अच्छा लगता था उनके कुछ शब्द हमे अच्छी तरह याद हैं – ” ब्रहम ज्ञानी “, “संत का दोखी ” ,” सब ते ऊच ताकि शोभा बनी ,नानक एह गुण नाम सुखमनी

हमारी माँ अनपढ़ थी और उनको गुरबानी पड़नी नहीं आती थी ,पर वह अपनी स्मृति से जपजी साहिब का पाठ करती थी हमारे नाना (माँ के पिता) मोतियों की माला ले कर पूजा करते थे ।हम भी अपने परिवार के संग रविवार को गुरद्वारे जाते थे

हम बड़े होकर इंजिनियर बन गए और हमारी शादी एक घरेलु लड़की से हो गई , हमारे एक बेटा और एक बेटी हुई , हमारी ज़िन्दगी आराम से कट रही थी हमारी पत्नी बहुत ही धार्मिक खियालो वाली हैं वह हमेशा धार्मिक किताबें पड़ती है हम कभी कबार धार्मिक स्थानों पर जाते थे पर कभी भी उनके कार्यों में रुचि नहीं दीखाई

हम नें कभी भी धार्मिक सथानों यां गरीबों को चंदा नहीं दिया

यह ज़िन्दगी का एक ऐसा मक़ाम था ,जिसने हमें रुहानियत की तरफ मोड़ दिया १९८२ में हम ३५ साल के थे जब हमारी एक सड़क दुर्घटना हो गई उसी सुबह हमें एक अजीब सा सपना आया , कुछ लोग काले कपड़ों में हमें लेने आये, हम उनके साथ चल पड़े पर , जैसे ही हमने अपने घर की दहलीज़ पार की वहां कुछ सफ़ेद कपड़ों में लोगों ने काले कपड़ों वालों का रास्ता रोक लिया वह कहने लगे -” इसे नहीं ले जा सकते, इसी यहीं रहने दोतब वह हमें घर वापिस ले आये उसी दिन दुपहर में हमारे सड़क दुर्घटना हो गई हमारी बुआ हमें हस्पताल में मिलने आई, तो उन्होंने कहा कीभगवान् ने हमें हाथ देकर बचा लिया हैंहम आज तक उनके यह शब्द नहीं भूले

बाद मैं जब हम ने सुखमनी साहेब का पाठ शुरू कीया तो हमे यह पंक्ति हमेशा याद आती रही. जिस का स्वास ना काढत आप , तिस को राखत दे कर हाथ

इस एक्सिडेंट के कारन हमने लगभग माह घर पर ही इलाज और आराम किया , इसी दोरान हमने जपजी साहेब का पाठ शुरू कर दिया और धीरे धीरे पाठ में दिल लगने लगा . जपजी साहेब के पाठ ने हमें आत्मिक और शारीरिक शक्ति दी . कुछ समय बाद हमने सुखमनी साब का पाठ शुरू कर दिया और धीरे धीरे इसका नियम बन गया. प्रभु किरपा से गुरबानी में हमारा विश्वास बहुत बढ गया . जो दुःख हमें मिला वोह असल में हमारी आत्मा की दवाई बन गयी .

जिस तरह गुरु नानक जी ने कहा हैं

दुख दारू सुख रोग भया

इस तरह हमारा आत्मिक सफ़र शुरू हुया

१९६६ में हम USA चले गए और २००० तक एक साधारण पारिवारिक जीवन व्यतीत करते रहे २००० के बाद हमारा काफी नुक्सान हुआ और पारिवारिक ज़िन्दगी भी काफी मुश्किल भरी रही। इस मुश्किल के समय हमारी पतनी, जो नितनेम में पक्की रहती थी, हमें आत्मिक सहारा दिया और हमारा गुरबानी में रुझान बढता गया. हमे दूसरी बार दुःख आत्मिक दारू बनता हुआ लगा

नाम की प्राप्ती : बाबाजी का मिलना

१९८८ जून का महीना, कुछ जानकारों ने हमे बाबाजी के बारे में बताया . जैसे जैसे हमने बाबाजी की विस्मादी कहानीया सुननी शुरू की , वैसे वैसे हमारा मन बदलना शुरू हो गया उसी रात से हम दोनों ( हम और पत्नी) ने अमृत वेला .०० जागना शुरू कर दीया

हमारे दोस्त ने कहा की बाबाजी ब्रह्म ज्ञानी हैं और तब हमे सुखमनी साहेब की यह पंक्ती याद गयी ब्रह्म ज्ञानी मुक्त जुगत जी का दाता ,ब्रह्म ज्ञानी पूरण पुरख विधाता

हमारे मित्र की बातों का हमारे ऊपर बहुत बड़ा असर पड़ा और हम बाबाजी को मिलने के लिए बेताब होने लगे

ऐसा संत मिलाओ मो को कंत जिना के पास

भाग हुआ गुर संत मिलाया प्रभ अविनासी घर में पाया

अगस्त के तीसरे महीने में हमारी पत्नी को इंडिया जाना था और हम दोनों बाबाजी को इससे पहले मिलना चाहते थे यह हमारे लिए पारब्रह्म का इशारा था ओर गुर् परसाद की शुरुआत थी हमारे दिल में बाबाजी के दर्शन की तड़प से इक तरह की शांती रही थी

वोह सुभ दिन अगस्त २५ ,२००० को आखिर ही गया , जब हमारे मित्र ने हम पर कृपा कर के हमे बाबाजी के दर्शन करवाए। बाबाजी हमे देखते ही दरवाजे पर आये ओर हमे गले लगा लिया। जैसे ही उन्होंने हमे गले लगाया, हमने बहुत शांती महसूस की. हमे द्रिड निश्चय हो गया की हमे भगवान् के दर्शन हो गए हैं अब भगवान् हमारी सारी परेशानी को दूर कर देंगे।

बाबाजी ने हमेइक ओंकार श्री सतनाम वाहेगुरुका सिमरन करने ओर सुखमनी साहेब को पड़ने को कहा. हमारा आत्मिक सफ़र यही शुरू हो गयाइस को धरम खंड कहते हैं। बाबाजी ने किरपा की ओर बताया की वोह हमे पहले तीन खंडधरम,ज्ञान,सरम से निकालते हुए करम खंड में जल्दी ले जायेंगे. हमे तब इन खंडो का ज्ञान नहीं था , पर हमारे मित्र ने अगले दिन हमें इनका महत्त्व समझाया।

बाबाजी ने हम पर बहुत किरपा की ओर हमे बताया की हम इसी जनम में जीवन मुक्त हो सकते अगर हम गुरु बचनो का पालन करे यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी ओर हम बहुत खुश थे।

गुर किरपा से हम हर दुसरे हफ्ते संगत में जाने लगे ओर ब्रह्म ज्ञान इकठा करने लगे

ब्रह्म ज्ञानी का दरस वडभागी पाइए , ब्रह्म ज्ञानी को बल बल जाइए

 

बाबाजी संगत में पूरण सत्य समझाते

हम सबको पूरण भगती करने को प्रेरते

हम सबको बिना नागा अमृत वेला उठ कर सिमरन करने को कहते

गुरबानी को ध्यान से आंखें बंद कर के सुनने ओर समझने को कहते

गुरबानी को करने को कहते( अपने जीवन में उतरने को कहते )

अपने परिवार की संगत की तरह सेवा करने को प्रेरते

अपने बुरे कर्मो की माफी मागना सिखाते

संगत में बर्तन ओर जूते साफ़ करने को प्रेरते , जिससे अहंकार का खातमा हों

अपने जीवन में सत्य की पालना पर जोर देते

हमे गुरु का महत्व समझाते, की कैसे गुरु चरण ही परब्रहम पाने का रस्ता हैं.


उनका पूरा जोर सबको पूरण सचार्य – ( इक सतवादी पुरुष जो अन्दर से सत से जुड़ा हो, ओर बाहर से सत की सेवा करे ) बनने पर था ओर आज भी हें

पूरण भगती का आधार हमेशा से ही गुर परसाद नामसतनामरहा हैं ओर रहेगा , बाबाजी अकाल पुरख के बख्शे हुए पूरण संत हैं ओर अकाल पुरख ने उन को संगत को नाम दान करने का हुकम दीया हैं।

बाबाजी से पूरण ज्ञान पाना हमारा ज्ञान खंड में प्रवेश करना था.